कुनूते वित्र की दुआ ।
116. (ऐ अल्लाह! तूने जिन लोगों को हिदायत दी है, उन्हीं के साथ मुुझे भी हिदायत दे दे, जिन लोगों को तूने आफ़ियत दी है, उन्हीं के साथ मुुझे भी आफ़ियत दे दे, जिनका तू वाली बना है उन्हीं के साथ साथ मेरा भी वाली बन, तूने जो कुछ मुझे अ़ता किया है उस में मेरे लिए बरकत दे औऱ जो फ़ैसले तूने किए हैं उनकी बुराई से मुझे मह़फ़ूज़ रख। क्योंकि तू ही फ़ैसला करने वाला है और तेरे ख़िलाफ़ कोई फ़ैसला नहीं कर सकता। जिसका तू दोस्त बन जाए वो कभी रुस्वा नहीं हो सकता [और जिसका तू दुशमन बन जाए वो कभी इज़्जत वाला नहीं हो सकता।] ऐ हमारे रब! तू बहुत बरकत वाला और बुलन्द है।) (1)
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(1) अबू-दाऊद ,हदीस संख्याः1425, तिर्मिज़ी, हदीस संख्याः464, नसाई,हदीस संख्याः1744, इब्ने माजा हदीस संख्याः1178, अह़मद, हदीस संख्याः1718, दारिमी, हदीस संख्याः1592, ह़ाकिमः3/172, बैहक़ीः2/209, दोनों कोष्ठों के बीच का भाग बैहक़ी का है, देखिएः सह़ीह तिर्मिज़ीः1/144 , सह़ीह इब्ने माजाः1/194 और शैख़ अल्बानी की इरवाउल-ग़लीलः2/172
117. (ऐ अल्लाह! मैं तेरी नाराज़गी से भाग कर तेरी रज़ा की पनाह में आता हूं, तेरी सज़ा से तेरी माफ़ी की पनाह में आता हूं और तुझसे तेरी पनाह में आता हूं। तू उसी तरह़ है जिस तरह़ तूने ख़ुद अपनी तारीफ़ की है।) (1)
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(1) अबू-दाऊद ,हदीस संख्याः1427, तिर्मिज़ी, हदीस संख्याः3566, नसाई,हदीस संख्याः1746, इब्ने माजा हदीस संख्याः1179, अह़मद, हदीस संख्याः751, देखिएः सह़ीह तिर्मिज़ीः3/180 , सह़ीह इब्ने माजाः1/194 और अल्बानी की इरवाउल-ग़लीलः2/175
118. (ऐ अल्लाह! हम तेरी ही इबादत करते हैं। तेरे लिए ही नमाज़ पढ़ते हैं। तेरी तरफ़ ही कोशिश और जल्दी करते हैं। तेरी रह़मत की उम्मीद रखते हैं और तेरे अ़ज़ाब से डरते हैं। तेरा अ़ज़ाब काफ़िरों को मिलने वाला है। ऐ अल्लाह! हम तुझसे मदद मांगते हैं और तुझसे माफ़ी मांगते हैं। तेरी अच्छी तारीफ़ करते हैं। तेरी नाशुक्री नहीं करते। तुझपर ईमान रखते हैं। तेरे सामने झुकते हैं। जो तेरी नाशुक्री करे हम उससे अपना रिशता ख़त्म करते हैं।) (1)
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(1) बैहक़ी ने इसे 'सुन-ने-कुबरा' में रिवायत करके इसकी सनद को सह़ीह़ कहा है। 2/211 और शैख़ अल्बानी ने अपनी किताब इरवाउल-ग़लील में कहा हैः(( इसकी सनद सह़ीह़ है।)),2/170, और ये दुआ उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के कथन से साबित है, रसूलुल्लाह से नहीं।