आखिरी तशह्हुद के बाद और सलाम फेरने से पहले की दुआएँ ।

55. (ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह पकड़ता हूं क़ब्र के अ़ज़ाब से, जहन्नम के अ़ज़ाब से, ज़िन्दगी तथा मौत के फ़ितने से और मसीह़ दज्जाल के फ़ितने की बुराई से।) (1) ....................... (1) बुखारीः2/102, हदीस संख्याः1377, मुस्लिमः1/412, हदीस संख्याः588, शब्द मुस्लिम के हैं।

56. (ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूं क़ब्र के अ़ज़ाब से और तेरी पनाह चाहता हूं मसीह़ दज्जाल के फ़ितने से और तेरी पनाह चाहता हूं ज़िन्दगी तथा मौत के फ़ितने से और तेरी पनाह चाहता हूं गुनाह से और क़र्ज़ (ऋन) से।) (1) ....................... (1) बुखारीः1/202, हदीस संख्याः832, मुस्लिमः1/412,हदीस संख्याः587

57. (ऐ अल्लाह! मैंने अपनी जान पर बहुत ज़ुल्म किया और तेरे सिवा कोई और गुनाहों को माफ़ नहीं कर सकता। अतः मुझे अपने ख़ास फ़ज़्ल से बख़्श दे और मुझ पर रह़म कर। बेशक तू बख़्ने वाला और अत्यधिक रह़म करने वाला है।) (1) ..................... (1) बुखारीः8/168, हदीस संख्याः834, मुस्लिमः4/2078, हदीस संख्याः2705

58. (ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे जो मैंने पहले किया, जो बाद में किया, जो मैंने छिपा कर किया और जो सबके सामने किया, जो मैंने ज़्यादती की और जिसे तू मुझसे ज़्यादा जानता है। तू ही आगे ले जाने वाला और तू ही पीछे करने वाला है। तेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं।) (1) ............................ (1) मुस्लिमः1/534,हदीस संख्याः771

59. (ऐ अल्लाह! अपनी याद, अपने शुक्र और अपनी अच्छी इबादत पर मेरी मदद फरमा।) (1) ........................ (1) अबू दाऊदः2/86, हदीस संख्याः1522, नसाईः3/53, हदीस संख्याः2302, अल्बानी ने इसे सह़ीह़ अबू दाऊदः1/284 में सह़ीह़ कहा है।

60. (ऐ अल्लाह! मैं कन्जूसी से तेरी पनाह चाहता हूं, बुज़्दिली से तेरी पनाह चाहता हूं, औऱ इस बात से तेरी पनाह चाहता हूं कि निकम्मी उम्र की तरफ़ लौटाया जाऊं, तथा मैं दुनिया के फ़ित्ने औऱ क़ब्र के अ़ज़ाब से तेरी पनाह चाहता हूं।) (1) ...................... (1) बुखारी फ़त्ह़ुल-बारी के साथः6/35, हदीस संख्याः2822,6390

61. (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे जन्नत का सवाल करता हूं और जहन्नम से तेरी पनाह चाहता हूं।) (1) ........................... (1) अबू दाऊद ह़दीस संख्याः792, इब्ने माजा ह़दीस संख्याः910, और देखिएः सह़ीह़ इब्ने माजाः2/38

62. (ऐ अल्लाह! मैं तेरे ग़ैब जानने और मख़्लूक़ पर क़ुदरत रखने के साथ सवाल करता हूं कि मुझे उस वक़्त तक ज़िन्दा रख, जब तक ज़िन्दगी मेरे लिए बेहतर जाने और मुझे उस वक़्त वफ़ात दे, जब वफ़ात मेरे लिए बेहतर जाने। ऐ अल्लाह! मैं ग़ायब और ह़ाज़िर होने की ह़ालत में तुझसे तेरे खौफ़ का सवाल करता हूं, रज़ा तथा नाराज़्गी हर ह़ालत में तुझसे ह़क़ बात कहने की तौफ़ीक़ मांगता हूं, अमीरी तथा ग़रीबी में बीच का रास्ता अपनाने की तौफ़ीक़ मांगता हूं, तूझसे ऐसी नेमत का सवाल करता हूं जो कभी ख़त्म न हो, आंखों की ऐसी ठंडक का सवाल करता हूं जो समाप्त न हो, तुझसे तेरे फ़ैस्ले पर राज़ी रहने का सवाल करता हूं, तुझसे मौत के बाद ख़ुश्गवार ज़िन्दगी का सवाल करता हूं और तुझसे तेरे चेहरे की तरफ़ देखने की लज़्ज़त और तेरी मुलाक़ात के शौक़ का सवाल करता हूं, बिना किसी कष्ट-दायक मुसीबत और गुमराह करने वाले फ़ितने के। ऐ अल्लाह! हमें ईमान की शोभा से सुशोभित फ़रमा और हमें हिदायत याफ़ता रहबर बना दे।) (1) ........................... (1) नसाईः3/54-55, ह़दीस संख्याः1304, अह़मदः4/364,ह़दीस संख्याः21666, इसे अल्बानी ने सह़ीह़ नसाईः1/281 में सह़ीह़ कहा है।

63. (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे सवाल करता हूं इस बात के द्वारा कि तू अकेला है, एक और बेनियाज़ है, जिसने न किसी को जना और न वह किसी से जना गया है और न ही उसका कोई समकक्ष है, कि तू मेरे गुनाहों को माफ़ फरमा दे। बेशक तू ही बख़्शने वाला और मेहरबान है।) (1) ......................... (1) नसाईः3/52, हदीस संख्याः1300, इन्हीं शब्दों के साथ, अह़मदः4/338,ह़दीस संख्याः18974, इसे अल्बानी ने सह़ीह़ नसाईः1/280 में सह़ीह़ कहा है।

64. (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे सवाल करता हूं इस बात के द्वारा कि हर प्रकार की तारीफ़ तेरे ही लिए है, तेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, तू अकेला है, तेरा कोई शरीक नहीं, तू बेह़द एह़सान करने वाला है। ऐ आस्मानों तथा ज़मीन को बनाने वाले! ऐ बुज़ुर्गी तथा इज़्ज़त वाले! ऐ ज़िन्दा तथा क़ायम रखने वाले! मैं तुझसे जन्नत का सवाल करता हूं और आग से तेरी पनाह चाहता हूं। (1) ........................ (1) अबू दाऊद, हदीस संख्याः1495, तिर्मिज़ी ,हदीस संख्याः3544, इब्ने माजा, हदीस संख्याः3858, नसाई, हदीस संख्याः1299, देखिएः सह़ीह़ इब्ने माजाः2/329

65. (ऐ अल्लाह! मैं तुझसे सवाल करता हूं इस बात के द्वारा कि मैं गवाही देता हूं कि तेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, तू अकेला है, बेनियाज़ है, जिसने न किसी को जना और न वह किसी से जना गया है और न ही उसका कोई समकक्ष है, कि तू मेरे गुनाहों को माफ़ फरमा दे। बेशक तू ही बख़्शने वाला और मेहरबान है।) (1) ......................... (1) अबू दाऊदः2/62, ह़दीस संख्याः1493, तिर्मिज़ीः5/515 ,हदीस संख्याः3475, इब्ने माजाः2/1267, हदीस संख्याः3857, नसाईः1300, इन्हीं शब्दों के साथ, अह़मदः4/338,ह़दीस संख्याः18974, इसे अल्बानी ने सह़ीह़ नसाईः1/280 में सह़ीह़ कहा है।और देखिएः सह़ीह़ इब्ने माजाः2/319, सह़ीह़ तिर्मिज़ीः3/163

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