तौबा व इस्तिगफार करना (अल्लाह से बख्शिश और माफी माँगना)

148. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (अल्लाह की क़सम, मैं दिन में सत्तर मर्तबा से ज़यादा अल्लाह से बख़्शिश मांगता हूं और उसके सामने तौबा करता हूं।) (1) ....................... (1) बुख़ारी फ़त्ह़ुल्-बारी के साथः11/101, हदीस संख्याः6307

249. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (ऐ लोगो! अल्लाह के सामने तौबा करो, मैं दिन में सौ मर्तबा उसके सामने तौबा करता हूं।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2076, ह़दीस संख्याः2702

250. आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः (जो आदमी यह दुआ पढ़ेः 'मैं अज़मत वाले अल्लाह से माफ़ी मांगता हूं, जिसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, वह हमेशा ज़िन्दा रहने वाला और सबको क़ायम रखने वाला है और मैं उसके सामने तौबा करता हूं', तो अल्लाह तआला उसे बख़्श देता है, चाहे वो लड़ाई के मैदान से भागा हुआ ही क्यों न हो।) (1) ........................... (1) अबू दाऊदः2/85, हदीस संख्याः1517, तिर्मिज़ीः5/569, हदीस संख्याः3577,ह़ाकिम ने इसे रिवायत करके सह़ीह़ कहा है और ज़ह्बी ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है। 1/370, और शैख़ अल्बानी ने इसे सह़ीह़ कहा है। देखिए सह़ीह़ तिर्मिज़ीः3/182 और जामिउल-उसूलः4/389-390, तह़क़ीक़ अरनाऊत।

251. आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः (अल्लाह तआला बन्दे के सबसे क़रीब रात के अन्तिम ह़िस्से में होता है। य़दि तुम उन लोगों में शामिल हो सको जो उस समय अल्लाह को याद करते हैं तो हो जाओ।) (1) ................................ (1) तिर्मिज़ी, हदीस संख्याः3579, नसाईः1/279, हदीस संख्याः572, ह़ाकिमः1/3309,और देखिए सह़ीह़ तिर्मिज़ीः3/183 और जामिउल-उसूलः4/144, तह़क़ीक़ अरनाऊत।

252. आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः (बन्दा अपने रब से सबसे क़रीब सज्दे की ह़ालत में होता है। तो सज्दे में ज्यादा दुआ किया करो।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः1/350, ह़दीस संख्याः482

253. आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः (मेरे दिल में पर्दा सा आ जाता है और मैं दिन में सौ मर्तबा अल्लाह के सामने तौबा करता हूं।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2075, ह़दीस संख्याः2702, इब्ने असीर फ़रमाते हैं कि पर्दा सा आ जाने से मुराद भूल है, क्योंकि आप ज़्यादा से ज़यादा ज़िक्र-अज़्कार, क़ुर्बत और अल्लाह के मुराक़बे में व्यस्त रहते थे। लेकिन जब इनमें से किसी चीज् में कोइ कमी रह जाती या आप भूल जाते तो उसे अपने लिए गुनाह शुमार करते और ऐसी ह़ालत में अधिक से अधिक तौबा व इस्तिग़फ़ार करते। देखिएः जामिउल-उसूलः4/386

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