गम और फिक्र से नजात पाने की दुआ

120. (ऐ अल्लाह! मैंं तेरा बन्दा हूं। तेरे बन्दे और तेरी बन्दी का बेटा हूं। तेरा ह़ुक्म मुझ पर जारी है। मेरे बारे में तेरा फैसला इंसाफ़ पर आधारित है। मैं तुझसे तेरे हर उस ख़ास नाम के द्वारा-जिससे तूने ख़ुद को नामित किया है, या अपनी किताब में नाज़िल किया है, या अपनी मख़्लूक़ में से किसी को सिखाया है या फिर तूने उसे अपने इल्मे-ग़ैब में मह़फूज़ कर रखा है-ये सवाल करता हूं कि क़ुरआन को मेरे दिल की बहार, मेरे सीने का नूर, मेरे ग़म को दूर करने वाला औऱ मेरी परेशानी को ख़त्म करने वाला बना दे।) (1) ..................................... (1) अह़मदः1/391, ह़दीस संख्याः3712, शैख़ अल्बानी ने इसे सिल्सिला सह़ीह़ा में सह़ीह़ कहा है, 1/337

121. (ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह मांगता हूं परेशानी से, ग़म से, आजिज़ हो जाने से, सुस्ती एवं काहिली से, कन्जूसी से, बुज़्दिली से तथा क़र्ज़ (ऋन) के बोझ एवं लोगों के ग़ल्बे से।) (1) ..................................... (1) बुखारीः7/158. ह़दीस संख्याः2893, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ये दुआ अधिक से अधिक किया करते थे। देखिएः बुख़ारी फ़त्ह़ुल्-बारी के साथः11/173, तथा पृष्ठः89, दुआ संख्याः137 में ये रिवायत दोबारा आ रही है।

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