नमाज़े इस्तिख़ारा की दुआ ।
74. जाबिर बिन अब्दुल्लाह फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमें तमाम कामों में इस्तिख़ारा करने की तालीम देते, जिस तरह़ क़ुरआन की किसी सूरा की तालीम देते। आप फ़रमातेः (तुम में से कोई आदमी जब किसी काम का इरादा करे तो फ़र्ज़ के सिवा (नफिल की नीयत से) दो रक्अ़त नमाज़ अदा करे, फिर यह दुआ पढ़ेः ऐ अल्लाह मैं तेरे इल्म की मदद से भलाई तलब करता हूं औऱ तेरी क़ुदरत की मदद से क़ुदरत (शक्ति) मांगता हूं। बेशक तू ही क़ुदरत वाला है और मैं क़ुदरत नहीं रखता। तू ही जानता है और मैं नहीं जानता और तू ही ग़ैब की बातों को बख़ूबी जानने वाला है। ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि यह काम (उस काम का नाम ले) मेरे लिए मेरे दीन, मेरी ज़िन्दगी और मेरे नतीजे के तौर पर -या आप ने कहाः इस दुनिया के लिए या आख़रत के लिए- बेहतर है तो इस काम को मेरे लिए मुक़द्दर कर दे और इसे मेरे लिए आसान बना दे, फिर इसमें मेरे लिए बरकत दे। अगर तू जानता है कि यह काम (उस काम का नाम ले) मेरे लिए मेरे दीन, मेरी ज़िन्दगी और मेरे नतीजे के तौर पर -या आप ने कहाः इस दुनिया के लिए या आख़िरत के लिए- बुरा है तो इस काम को मुझसे दूर कर दे और मुझे इससे दूर कर दे। और मेरे लिए भलाई मुक़द्दर कर दे वह जहां भी हो, फिर तू उस काम पर मुझे राज़ी कर दे।) (1)
जो आदमी अल्लाह से इस्तिख़ारा करे, मोमिन बन्दों से मश्वरा (प्रामर्श) करे और साबित क़दमी (स्थिरता) से काम करे, उसे पछतावा नहीं होता। अल्लाह तआला ने फरमायाः (और काम में उनसे मश्वरा कर लिया करें, फिर जब पक्का इरादा कर लें तो अल्लाह पर भरोसा करें।) (2)
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(1) बुखारीः7/162, ह़दीस संख्याः1162
(2) सूरा आले-इमरान, आयत संख्याः159