बादल गरजते समय पढ़ी जाने वाली दुआ
168. (पाक है वह ज़ात बादल की गरज जिसकी तस्बीह़ बयान करती है उसकी तारीफ के साथ और फ़रिश्ते भी उसके डर से उसकी तस्बीह़ पढ़ते हैं।) (1)
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(1) अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अन्हुमा जब बादल की गरज सुनते तो बातें छोड़ देते और यह दुआ पढ़ते। मुअत्ताः2/992, और शैख़ अल्बानी फरमाते हैं कि सह़ाबी से इस दुआ की सनद सह़ीह़ है, सह़ीह़ुल कलिमित्-तैयिबः157