सलाम को फैलाना
224. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (तुम जन्नत में दाख़िल नहीं हो सकते यहां तक कि तुम मोमिन बनो और तुम मोमिन नहीं बन सकते यहां तक कि आपस में एक दूसरे से मुह़ब्बत करो। क्या मैं तुम्हें ऐसी चीज़ न बताऊं, जिसके करने से तुम एक दूसरे से मुह़ब्बत करने लगो? आपस में सलाम को ख़ूब फ़ैलाओ।) (1)
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(1) मुस्लिमः1/74, ह़दीस संख्याः54, अह़मद ह़दीस संख्याः1430, शब्द अह़मद के हैं।
225. (तीन चीजें ऐसी हैं कि जो आदमी उन तीनों को ह़ासिल कर लेगा, वह ईमान को समेट लेगा। अपने आप से इन्साफ़ करना, तमाम लोगों को सलाम करना और ग़रीब होते हुये भी अल्लाह की राह में ख़र्च करना।) (1)
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(1) बुख़ारी फ़त्ह़ुल्-बारी के साथः1/82, हदीस संख्याः28 अ़म्मार (रज़ि) से मौक़ूफ और मुअ़ल्लक़ तौर पर।)
226. अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा फ़रमाते हैं कि एक आदमी ने रसूलुल्लाह से सवाल किया कि इस्लाम का कौन सा काम सबसे बेहतर है? आप ने फरमायाः (यह कि तुम खाना खिलाओ और जिसे पहचानते हो उसे तथा जिसे नहीं पहचानते हो सबको सलाम करो।) (1)
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(1) बुख़ारी फ़त्ह़ुल्-बारी के साथः1/55, हदीस संख्याः12, मुस्लिमः1/65, ह़दीस संख्याः39