तस्बीह (सुब्हानल्लाह), तह्मीद (अल्हमदुलिल्लाह), तह्लील (ला इलाहा इल्लल्लाह) और तक्बीर (अल्लाहु अक्बर कहने) की फज़ीलत

254. (आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः जो अादमी दिन में सौ बार ये कहेः 'पाक है अल्लाह अपनी तारीफ़ के साथ', उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं चाहे वो समुन्दर के झाग के बराबर क्यों न हों।) (1) ............................ (1) बुख़ारीः7/168, हदीस संख्याः6405, मुस्लिमः4/2071, ह़दीस संख्याः2691, सुबह़-शाम इस दुआ को सै बार पढ़ने की फ़ज़ीलत के लिए देखिए इसी किताब की पृष्ठ संख्याः65

255. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जो आदमह दस बार यह दुआ पढ़ेः 'अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। वह अकेला है। उसका कोई शरीक नहीं। बादशाही उसी की है। उसी के लिए सब तारीफ़ है और वो हर चीज़ पर क़ादिर है।' वह उस आदमी की तरह़ होगा जिसने इस्माईल अलैहिस-सलाम की औलाद में से सौ ग़ुलाम आज़ाद किए।) (1) ............................ (1) बुख़ारी फ़त्ह़ुल्-बारी के साथः7/67, हदीस संख्याः6404, मुस्लिमः4/2071, ह़दीस संख्याः2693, शब्द मुस्लिम के हैं। इस दुआ को दिन में सौ बार पढ़ने की फ़ज़ीलत के लिए देखिए इसी किताब की दुआ संख्याः93, पृष्ठः66

256. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (दो शब्द ज़बान पर हल्के हैं, लेकिन मीज़ान (तराज़ू) में भारी हैं और अल्लाह को बड़े प्यारे हैं, 'पाक है अल्लाह और उसी के लिए हर क़िस्म की तारीफ़ है, पाक है महान अल्लाह।') (1) ............................ (1) बुख़ारीः7/168, हदीस संख्याः6404, मुस्लिमः4/2072, ह़दीस संख्याः2694

257. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (मेरे नज़्दीक सुबह़ानल्लाह, अल्-ह़म्दु लिल्लाह, ला इला-ह इल्-लल्लाह और अल्लाहु अक्बर कहना उन तमाम चीजों से ज़्यादा मह़बूब है जिन पर सूरज निकलता है।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2072, ह़दीस संख्याः2695

258. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (क्या तुम में से कोई आदमी रोज़ाना एक हज़ार नेकी कमाने से भी आजिज़ है?) आपके पास बैठे हुए साथियों में से एक ने कहाः हम में से कोई एक हज़ार नेकी कैसे कमा सकता है? तो आपने फ़रमायाः (वह सो बार तस्बीह़ कहे तो उसके लिए एक हज़ार नेकी लिख दी जाएगी या (आपने फ़रमाया) उसके एक हज़ार गुनाह मिटा दिए जाएंगे।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2073, ह़दीस संख्याः2698

259. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (जो आदमी, 'महान अल्लाह पाक है अपनी तारीफ़ों के साथ', उसके लिए जन्नत में खजूर का एक पेड़ लगा दिया जाता है।) (1) ................................. (1) तिर्मिज़ीः5/511, हदीस संख्याः3464,ह़ाकिम ने इसे रिवायत करके सह़ीह़ कहा है और ज़ह्बी ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है। 1/501, देखिए सह़ीह़ुल-जामेः5/531, सह़ीह़ तिर्मिज़ीः3/160

260. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (ऐ अ़ब्दुल्लाह बिन क़ैस! क्या मैं तुझे जन्नत के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना न बताऊँ?) मैं ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल! क्यों नहीं? ज़रूर बताएं। आप ने फ़रमायाः (तुम कहोः अल्लाह की तौफ़ीक़ के बिना न गुनाह से बचने की हिम्मत है, न नेकी करने की ताक़त।) (1) ............................ (1) बुख़ारी फ़त्ह़ुल-बारी के साथः11/213, हदीस संख्याः4206, मुस्लिमः4/2076, ह़दीस संख्याः2704

261. रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः (चार शब्द अल्लाह के निकट सबसे ज़्यादा प्रिय हैं, सुबह़ानल्लाह, अल्-ह़म्दु लिल्लाह, ला इला-ह इल्-लल्लाह और अल्लाहु अक्बर। और इनमें से जिससे भी चाहे शुरू करो, कोई ह़रज नहीं।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः3/1685, ह़दीस संख्याः2137

262. एक आराबी (देहाती) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगाः मुझे कुछ वाक्य सिखायें जो मैं कहा करूं। आप न फ़रमायाः (कहोः अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। वह अकेला है। उसका कोई शरीक नहीं। अल्लाह सबसे बडा है, बहुत बड़ा। तमाम तारीफ़ अल्लाह ही के लिए है, बहुत ज़्यादा। अल्लाह बहुत पाक है जो सारे जहानों का रब है। अल्लाह ग़ालिब और हिकमत वाले की तौफ़ीक़ के बिना न गुनाह से बचने की हिम्मत है, न नेकी करने की ताक़त।) देहाती ने कहाः ये तो मेरे रब के लिए है, मेरे लिए क्या है? आप ने फ़रमायाः (कहोः ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे, मुझ पर रहम कर, मुझे हिदायत दे और मुझे रोज़ी दे।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2072, ह़दीस संख्याः2696, अबू दाऊदः1/220, ह़दीस संख्याः832, में यह वृध्दि है कि जब वो देहादी वापस जाने लगा तो आप न फ़रमायाः (इसने अपने दोनों हाथ भलाई से भर लिए।)

263. (जब कोई वयक्ति मुसलमान होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे नमाज़ सिखाते, फिर उसे इन शब्दों के साथ दुआ करने का आदेश देतेः (ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे, मुझ पर रहम कर, मुझे हिदायत दे, मुझे आफ़ियद दे और मुझे रोज़ी दे।) (1) ........................... (1) मुस्लिमः4/2073, ह़दीस संख्याः3697, और मुस्लिम की एक रिवायत में है कि (ये शब्द तेरे लिए तेरी दुनिया औऱ आख़िरत जमा कर देंगे।)

264. (सबसे उत्तम दुआ अल्-ह़म्दु लिल्लाह है औऱ सबसे उत्तम ज़िक्र ला इला-ह इल्-लल्लाह है।) (1) ....................... (1) तिर्मिज़ीः5/462, हदीस संख्याः3383, इब्ने माजाः2/1249, हदीस संख्याः3800, ह़ाकिम ने इसे रिवायत करके सह़ीह़ कहा है और ज़ह्बी ने भी इस पर सहमति व्यक्त की है। 1/362,और देखिए सह़ीह़ुल-जामेः1/362

265. (बाक़ी रहने वाले नेक अ़मल ये हैंः अल्लाह पाक है, सारी प्रशंसा उसी के लिए है, अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है और अल्लाह की तौफ़ीक़ के बिना न गुनाह से बचने की हिम्मत है, न नेकी करने की ताक़त।) (1) .......................... (1) अह़मद ह़दीस संख्याः513, तरतीब अह़मद शाकिर, और देखिएः मजमउज़्-ज़्वाइदः1/297, ह़ाफ़िज़ इब्ने ह़जर ने बुलूग़ुल-मराम में अबू सईद की रिवायत से नसाई [अल-कुबरा, ह़दीस संख्याः10617] के ह़वाले से नक़ल किया है और कहा है कि इसे इब्ने ह़िब्बान [ह़दीस संख्याः840] और ह़ाकिम [1/541] ने सह़ीह़ कहा है।)

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